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धान खरीदी से पहले छत्तीसगढ़ में बड़ा संकट आंदोलन पर उतरे सहकारी समिति कर्मचारी, चेतावनी: मांगें नहीं मानीं तो धान खरीदी नहीं!


Hemant Kumar pal
28-10-2025 03:33 PM
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धान खरीदी से पहले छत्तीसगढ़ में बड़ा संकट आंदोलन पर उतरे सहकारी समिति कर्मचारी, चेतावनी: मांगें नहीं मानीं तो धान खरीदी नहीं!
हेमंत पाल दुर्ग। छत्तीसगढ़ की कृषि व्यवस्था की रीढ़ मानी जाने वाली सहकारी समितियों में इन दिनों असंतोष की लहर दौड़ पड़ी है।
धान खरीदी सीजन शुरू होने से पहले ही कर्मचारी और अधिकारी आंदोलन पर उतर आए हैं और चेतावनी दे रहे हैं कि अगर उनकी मांगें जल्द नहीं मानी गईं, तो आगामी सीजन में धान खरीदी का बहिष्कार किया जाएगा।दुर्ग संभाग की 502 समितियों के करीब दो हजार कर्मचारियों ने मानस भवन के पास जोरदार प्रदर्शन किया। नारों की गूंज में कर्मचारियों ने सरकार को अल्टीमेटम दिया मांगें पूरी करो, नहीं तो धान खरीदी बंद! चार सूत्रीय मांगें सरकार से हिसाब मांग रहे कर्मचारी कर्मचारियों का कहना है कि शासन ने पिछले सीजन में कई वादे किए थे, लेकिन आज तक लागू नहीं हुए।
उनकी चार सूत्रीय प्रमुख मांगें हैं, जिनमें सबसे अहम दो यह हैं: 1. साल 2024-25 की सुखत राशि समितियों को तत्काल जारी की जाए, ताकि खरीदी केंद्रों की तैयारी और मजदूरों का भुगतान समय पर हो सके। 2. धान परिवहन में देरी न हो, और जो खरीदी केंद्र शून्य शॉर्टेज (Zero Shortage) में काम करते हैं, उन्हें प्रोत्साहन राशि दी जाए। इसके साथ ही कर्मचारियों ने मानदेय बढ़ाने और वेतन भुगतान की निश्चित समयसीमा तय करने की भी मांग रखी है। वित्तीय संकट में डूबी समितियां वेतन तक नहीं मिल रहा आंदोलनकारियों ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, खाद्य मंत्री दयालदास बघेल, सहकारिता मंत्री केदार कश्यप और वित्त मंत्री ओ.पी. चौधरी को संबोधित ज्ञापन कलेक्टर के माध्यम से सौंपा है। ज्ञापन में बताया गया कि राज्य की 2058 समितियां और 2739 उपार्जन केंद्र किसानों की सेवा में दिन-रात कार्यरत हैं, लेकिन अब उनकी वित्तीय स्थिति डगमगा चुकी है।मार्कफेड द्वारा भुगतान से पहले सुरक्षा और सुखत व्यय की राशि काट ली जाती है,जबकि धान उठाव में देरी की पेनाल्टी शासन खुद रख लेता है।इस वजह से समितियों को घाटा उठाना पड़ता है और कर्मचारियों को महीनों तक वेतन नहीं मिल पाता। धान उठाव में देरी घाटे का सौदा कर्मचारियों ने यह भी आरोप लगाया कि मिलर (Rice Millers) समय पर धान नहीं उठाते।
इससे समितियों के गोदामों में भंडारण का संकट पैदा हो जाता है और धान के खराब होने का खतरा बढ़ जाता है।
ऐसे मामलों में शासन “शॉर्टेज” का नुकसान समितियों से वसूल लेता है यानी नुकसान भी हमारा, पेनाल्टी भी हमारी। कई समितियों ने बताया कि परिवहन और भुगतान में हो रही देरी से किसानों को भी परेशानी झेलनी पड़ती है। सरकार से सीधी अपील अब भरोसे की नहीं, फैसले की जरूरत है।छत्तीसगढ़ सहकारी समिति कर्मचारी महासंघ और समर्थन मूल्य धान खरीदी ऑपरेटर संघ ने संयुक्त रूप से कहा कि वे अब वायदों पर नहीं, बल्कि व्यवहारिक समाधान चाहते हैं।
संघ के पदाधिकारियों ने चेताया अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं, तो आगामी धान खरीदी सीजन में हम काम नहीं करेंगे।
यह आंदोलन अब चेतावनी भर नहीं, बल्कि हक की लड़ाई है।
आंदोलन का असर किसानों पर पड़ सकता है बड़ा प्रभाव
राज्य में लगभग 25 लाख किसान धान बेचने के लिए इन्हीं समितियों पर निर्भर हैं।अगर आंदोलन लंबा खिंचा, तो किसानों को अपने धान की बिक्री में भारी दिक्कतें होंगी।
धान खरीदी रुकने से न केवल किसान बल्कि राज्य की खाद्य आपूर्ति प्रणाली पर भी संकट मंडरा सकता है।
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