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चंदूलाल चंद्राकर शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, धमधा में छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति की अनोखी झलक

Hemant Kumar pal

17-10-2025 06:43 PM
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सुआ महोत्सव और दीपदानोत्सव बना जीवनोत्सव का प्रतीक

चंदूलाल चंद्राकर शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, धमधा में छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति की अनोखी झलक

हेमंत पाल दुर्ग धमधा चंदूलाल चंद्राकर शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, धमधा के इतिहास विभाग द्वारा दिनांक 16 अक्टूबर 2025 को सुआ महोत्सव एवं दीपदानोत्सव को जीवनोत्सव कार्यक्रम के रूप में मनाया गया।

कार्यक्रम का उद्देश्य विद्यार्थियों को छत्तीसगढ़ की लोक परंपराओं, संस्कृति और सामूहिकता के महत्व से परिचित कराना था। इस अवसर पर लगभग 50 छात्राओं ने पारंपरिक वेशभूषा में सुआ नृत्य प्रस्तुत कर सभी का मन मोह लिया। महाविद्यालय के कॉरिडोर में 500 दीपों की रौशनी से वातावरण आलोकित हो उठा — यह दृश्य मानो एक सांस्कृतिक पर्व का सजीव चित्र बन गया। कार्यक्रम में महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. उषा किरण अग्रवाल, सभी महिला प्राध्यापकगण, कार्यालयीन कर्मचारी एवं अतिथि प्राध्यापकगण सम्मिलित हुए। दीपदानोत्सव का संदेश अंधकार से प्रकाश की ओर प्राचार्य डॉ. उषा किरण अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा ...दीप जलाना केवल परंपरा नहीं, यह जीवन का प्रतीक है। दीप हमें सिखाता है कि स्वयं जलकर भी दूसरों के जीवन में प्रकाश फैलाना ही सच्ची सेवा है।उन्होंने बताया कि दीपदान से सेवा, त्याग, एकता और कर्तव्यनिष्ठा जैसी मानवीय मूल्यों का विकास होता है।

जब अनेक दीप साथ जलते हैं तो उनका प्रकाश बढ़ जाता है — यह विद्यार्थियों को टीमवर्क, एकजुटता और सहयोग की प्रेरणा देता है।

दीप का प्रकाश यह भी सिखाता है कि चाहे चारों ओर अंधकार हो, एक छोटी सी ज्योति भी आशा का मार्ग दिखा सकती है। सुआ महोत्सव - स्त्री शक्ति और प्रकृति का उत्सव

इतिहास विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ. ज्योति केरकेट्टा ने सुआ महोत्सव के सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा सुआ महोत्सव केवल गीत या नृत्य नहीं, बल्कि यह छत्तीसगढ़ की धरती, नारी और संस्कृति की आत्मा का उत्सव है।यह पर्व स्त्री सशक्तिकरण, एकता और लोकसंवेदना का प्रतीक है।

इस अवसर पर महिलाएँ मिट्टी से सुआ (तोता) बनाकर, धान के नए दानों से सजी पूजा करती हैं और गीतों के माध्यम से प्रकृति, पशु-पक्षी और धरती माता के प्रति आभार व्यक्त करती हैं।

सुआ गीतों में प्रेम, विरह, करुणा और संवेदना के स्वर झलकते हैं, जो समाज में मानवीय रिश्तों की गहराई को उजागर करते हैं।पूरे महाविद्यालय परिसर में उत्सव जैसा माहौल रहा।

छात्र-छात्राएँ लोक धुनों पर झूम उठे, और पारंपरिक नृत्य-गीतों के माध्यम से उन्होंने छत्तीसगढ़ के लोक जीवन की सुंदरता को आत्मसात किया।

कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों ने इतिहास विभाग के शिक्षकों और विद्यार्थियों के प्रयासों की खुले दिल से सराहना की।

इस अवसर पर महाविद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापक

डॉ. जी. डी. एस. बग्गा, डॉ. एस. के. मेश्राम, डॉ. दिव्या नेमा, उषा कुर्रे, रश्मि मोहती, शशि ठाकुर, तरुण पदमवार, डॉ. शकीला बानो, श्री खेमलाल नेताम, रुपेश वर्मा, डॉ. अर्चना बौद्ध सहित सभी विभागों के प्राध्यापक उपस्थित रहे। साथ ही, पेंड्रावन महाविद्यालय से आई अतिथि प्राध्यापिकाएँ संध्या धुर्वे और दामिनी कावड़े ने भी कार्यक्रम में सहभागिता की और छात्राओं का उत्साहवर्धन किया।



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